Calcutta - 1 in Hindi Travel stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | कलकत्ता यात्रा (प्रथम संस्मरण )

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कलकत्ता यात्रा (प्रथम संस्मरण )

 भारत आर्याब्रत सनातनीय बाहुल्य भू भाग जिसके सामजिक भौगोलिक परिवर्तन के जाने कितने दुःखद सुखद इतिहास है भारत सोने कि चिड़िया और विश्व मानवता का आदर्श एवं मार्ग दर्शक रहा  सनातनी समाज अति विनम्र एवं सहज रहा है जिसने भी जैसा चाहा सनातनी समाज को ढाला चाहे इस्लाम कि उत्पत्ति के साथ भारतीय संस्कृति धर्म पर कुदृष्टि प्रहार हो या वास्कोडिगामा के भारत आने के बाद पश्चिमी यूरोपिय देशों का भारत के प्रति आर्थिक आकर्षण दोनों कि परिणीति भारत कि गुलामी के रूप मे अतीत एवं इतिहास मे दर्ज है अशोक महान के द्वारा कलिंग युद्ध के उपरांत अहिंशा और शांति का मार्ग चुनने के बाद भरतीय समाज कि प्रतिरोधक अर्थात आत्म रक्षा कि शक्ति धीरे धीरे कम होते होते समाप्त होने लगी जिसके परिणाम स्वरूप हज़ारो वर्ष कि गुलामी भारत एवं भारतीय समाज को भोगनी पड़ी और भारत कि मूल संस्कृति भाषा एवं सामाजिक चरित्र आक्रांता संस्कृति संस्कार को आत्म साथ करता छोड़ता विकृत होने लगा जिसका परिणाम वर्तमान भारतीय सनातनी समाज है जिसे कभी पश्चात सभ्यता विकास का मूल सिद्धांत लगता है तो कभी सनातन अपनी संस्कृति उसे विश्व का मार्ग दर्शन करती प्रतीत होती है इसी द्वीपदीय सिद्धांत पर भारतीय समाज घूम रहा है एक सत्य भरतीय समाज मे अब तक अपरिवर्तनीय है वह है क्षेत्रीय सभ्यता संस्कृति जिसे किसी दौर मे कोई प्रभावित नही कर सका भारतीय क्षेत्रीय विरासत जिसने राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक प्रभावित किया उसमे पच्छिम बंगाल एवं बंगाली समाज है शिक्षा विज्ञानं कला साहित्य राजनीति लगभग सभी क्षेत्रों विधाओं मे  भारत को गौवान्वित किया है प्रभु पाद, मदर टेरेसा, रामकृष्ण परमहँस एवं स्वमी विवेकानंद जी,योगानंद जी,जे सी बसु, गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर, चितरंजन गाँधी, नेता जी सुभाष चंद्र बोस रास बिहारी बोस, राजेंद्र लहिड़ी शब्द समय समाप्त हो सकता है लेकिन पच्छिम बंगाल एवं बंगाली समाज द्वारा भारत के निर्माण योगदान को बिसमृत नही किया जा सकता है! बचपन से मुझे बंगाल एवं बंगाली संस्कृति सभ्यता कि भव्यता दिव्यता बंगाल का दुर्गापूजा जो बंगाल से चल कर अब भारत के प्रत्येक चौराहो तक पहुंच चुका हैके विषय मे आपने गाँव के उन लोंगो द्वारा जो कलकत्ता कमाने जाते थे द्वारा बताया गया या मेरे परिवार के बुजुर्ग बाबा आदि के द्वारा मेरे बाबा आचार्य पंडित हँस नाथ मणि त्रिपाठी जी अक्सर कलकत्ता आपने एक मात्र शिष्य श्री राम जी क़े यहाँ जाया करते थे मेरे मन मे कलकत्ता जाने कि जिज्ञासा बचपन से ही हिलोरे मार रही थी अवसर मिला वर्ष 1979 मे मैने गार्डन रिच एंड शिप बिल्डर्स मे एक परीक्षा के लिए जाना पड़ा मेरे पिता स्वर्गीय वासुदेव मणि त्रिपाठी मेरे साथ थेमुग़ल सराय रेलवे स्टेशन से दिन मे चार बजे जनता एक्सप्रेस से पिता पुत्र कलकत्ता के लिए रवाना हुआ दूसरे दिन दिन मे बारह एक बजे हाबड़ा जक्शन पर पहुंचे और होटल बंजारा मे जो हाबड़ा रेलवे स्टेशन के समीप ही है रुके!दूसरे दिन सुबह दैनिक क्रिया स्नान ध्यान से निवृत्त होकर गार्डन रिच के लिए रवाना हुए धुप बहुत तेज थी बस मे उमस गर्मी से मुझे रास्ते भर उलटी आती रही खैर किसी तरह से गार्डन रिच एंड शिप बिल्डर्स पहुंचे निर्धारित परीक्षा दिया और बाहर निकल कर कलकत्ता घूमने पिता के साथ चल पड़े धर्मतल्ला कलकत्ता का मुख्य बाज़ार बिरला प्लेनेटोरियम  देखा सांपो का बगीचा देखा रेप्टाइल्स गार्डन और बहुत सी ऐतिहासिक एवं अविस्मरणीय सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय धरोहर आदि कलकत्ता क़े प्रथम भ्रमण के दौरान विक्टोरिया गार्डन कि मानवीय अश्लीलता जिसे देखने के बाद कोई भी बाहरी व्यक्ति शर्मसार हो जायेगा ज़ब मैंने इस संदर्भ मे लोगो से जानकारी प्राप्त कि तो चौकाने वाले तथ्य सामने आए लोंगो ने बताया कलकत्ता बहुत बड़ा एवं घनी आबादी का शहर है यहाँ सबसे अधिक संसस्या रहने कि है जिसके कारण प्यार का जगह समय नही उपलब्ध हो पता इसीलिए लोग समय सुविधा के अनुसार विकटोरिया पार्क जाते है और अपनी आवश्यकता कि पूर्ति करते है सच्चाई जो भी हो बताया लोगो ने यही सच! कलकत्ता प्रथम यात्रा के दौरान ज़ब मै आपने पिता के साथ सांय बस से लौट रहा बस मे बंगाली समाज के बंगाली भाषी ही बैठे थे गैर बंगाली मै और मेरे पिता ही थे शायद बात बात मे हम लोंगो के बगल बैठे एक महाशय ने कुछ पूछा उत्तर मैंने ही अंग्रेजी मे दिया जनाब मेरा उत्तर सुनते आग बबुला हो गए और तेज आवाज मे क्रोधित होते बोले आपको बंगाली बोलने नही आती आप बंगाली नही हो और जाने क़्या क़्या अनाप शनाप बोलने लगे सारे बस के लोग उन्हें समझाने जुट गए लोंगो ने कहाँ बच्चा है आया है किसी काम से कलकत्ता कम से कम ऐसा आचरण व्यवहार तो करो कि बाल मन पर बंगाल एवं बंगाली समाज के प्रति अच्छा प्रभाव पड़े इसी वात विवाद तनाव पूर्ण वातावरण मे हमारा स्टेशन आ गया हम आज तक यह सोचते है कि भारत इतने दिन गुलाम सिर्फ इसलिए रहा क्योंकि यहाँ सब कुछ है सिर्फ भारतीयता नही है जो तब भी प्रासंगिक था आज भी प्रामाणिक है और सकारात्मक प्रयास नही हुए तो भविष्य के बिघटन एवं गुलामी का पथ संस्कार है!!बहुत सी घटनाओ या संस्मरण वर्णन करना सम्भव नही है जिसने इस प्रथम कलकत्ता यात्रा के दौरान प्रभावित किया एक संवली लड़की का भी दिखना मिलना जिसे वर्तमान बंगाल कि शेरनी कहता है बहुत विशेष स्मरण है जिसे माँ काली के काली घाट काप्रभाव मना जा सकता है!!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!